बिहार का लोक संगीत

परिचय

बिहार की धरती सदियों से भारतीय संगीत के लिए एक उर्वर भूमि रही है। इस राज्य ने देश को कई महान संगीतकार दिए हैं, जिन्होंने भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे शहनाई वादक से लेकर दरभंगा और बेतिया घराने के प्रसिद्ध ध्रुपद गायक पंडित धरीक्षण मिश्र तक, इन सभी ने बिहार की संगीत परंपरा को समृद्ध किया है।

लोक संगीत की विविधता

बिहार का लोक संगीत यहाँ के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है। यह केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं का दर्पण भी है।

प्रमुख लोक गीत शैलियाँ

  1. सोहर
    • बच्चे के जन्म पर गाए जाने वाले गीत
    • वाद्ययंत्र: ढोलक, मंडल, ताल
    • माँ और शिशु के बीच के पवित्र बंधन को दर्शाते हैं
  2. सुमंगली
    • विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गीत
    • नवदंपति के लिए मंगलकामना व्यक्त करते हैं
    • परिवार और समाज के बंधन की महिमा का वर्णन
  3. रोपनी गीत
    • धान की रोपाई के समय गाए जाते हैं
    • किसानों के जीवन और कृषि संस्कृति को दर्शाते हैं
  4. कटनी गीत
    • फसल कटाई के समय गाए जाते हैं
    • श्रम के साथ-साथ उत्सव का भाव
  5. बिदेसिया
    • प्रवास की पीड़ा को व्यक्त करने वाली गायन शैली
    • भोजपुरी क्षेत्र की विशेषता
    • छठ पूजा के अवसर पर विशेष महत्व
  6. होली गीत
    • होली के त्योहार पर गाए जाते हैं
    • वाद्य यंत्र: ढोलक, हारमोनियम, झाल
    • विषय: रंग, मस्ती, कृष्ण-राधा की होली

धार्मिक संगीत की परंपरा

  • ‘हरकीर्तन’ और ‘अष्टजाम’ जैसे धार्मिक लोकगीत
  • मंदिरों में चौबीस घंटे ‘हरे-राम, हरे-कृष्ण’ का कीर्तन

विशिष्ट गायक वर्ग

  1. भट्ट जाति: परंपरागत गायक, विशेषकर सोहर गीतों में माहिर
  2. कथक: ढोलक, सारंगी, तंबूरा के साथ भ्रमण करते हुए गाते थे
  3. भजनिया: धार्मिक गीतों के विशेषज्ञ
  4. कीर्तनिया: हरिकीर्तन और भक्ति गीतों के गायक

विश्व में बिहारी संगीत का प्रभाव

बिहारी संगीत का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है:

  • मॉरीशस
  • दक्षिण अफ्रीका
  • कैरीबियाई क्षेत्र
  • पाकिस्तान
  • बांग्लादेश

समकालीन परिदृश्य

आज भी बिहार में लोक संगीत की परंपरा जीवंत है। भले ही कुछ परंपरागत कलाकार अपना पेशा छोड़ चुके हैं, लेकिन नई पीढ़ी इस विरासत को आगे बढ़ा रही है।

निष्कर्ष

बिहार का लोक संगीत इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य खजाना है। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का वाहक भी है। आज के बदलते परिवेश में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है, और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर है।

Leave a Comment