वसंत पंचमी – Vasant Panchami

वसंत पंचमी (या बसंत पञ्चमी) [Basant Panchami] भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह त्योहार प्रायः जनवरी के अंतिम सप्ताह या फरवरी के प्रथम सप्ताह में आता है।

यह पावन पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, परंतु इसका विशेष महत्व पूर्वी भारत, विशेषकर बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में देखा जाता है। इन राज्यों में यह ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। विद्यार्थी और कलाकार इस दिन को विशेष महत्व देते हैं, क्योंकि यह ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी पावन दिन ब्रह्माजी के मुख से देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन को सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, कला, संगीत और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से छात्र-छात्राएं और कलाकार मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी किताबों, कलात्मक उपकरणों और वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं।

वसंत पंचमी का त्योहार प्रकृति के नवजीवन का भी प्रतीक है। यह दिन वसंत ऋतु के आगमन की घोषणा करता है, जब प्रकृति नए परिधान में सज जाती है। सरसों के पीले फूल, कोयल की मधुर कूक और मौसम की सुहावनी मिठास इस त्योहार को और भी खास बना देती है। पीला रंग इस त्योहार का प्रमुख रंग है, जो ज्ञान और प्रकृति के नवजीवन का प्रतीक माना जाता है।

इस पावन अवसर पर विद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। छोटे बच्चों को इसी दिन औपचारिक रूप से विद्यारंभ कराया जाता है, जिसे ‘हाथे खड़ी’ या ‘विद्यारंभ संस्कार’ के नाम से जाना जाता है। कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें नृत्य, संगीत और कविता पाठ शामिल होते हैं।

वसंत पंचमी केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपराओं का प्रतीक भी है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि ज्ञान और कला का महत्व हमारी संस्कृति में कितना गहरा है, और कैसे हमारी परंपराएं प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाती हैं।

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