बिहार का राजकीय पक्षी- State Bird of Bihar

बिहार राज्य का राजकीय पक्षी एक छोटी सी, चंचल और इंसानों के घरों में आसानी से दिखने वाली घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) है। गौरैया यह केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि बिहार की पहचान, उसके पर्यावरण और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गौरैया हमारे आस-पास के वातावरण का एक अभिन्न अंग रही है। बचपन से ही हम इस नन्ही चिड़िया को अपने घरों के आंगन में, छतों पर और पेड़ों पर चहकते हुए देखते आए हैं। यह अनाज के दानों को चुनती, फुदकती और मधुर आवाज में चहचहाती है। गौरैया का घरों के करीब रहना, इंसानों के साथ उसका जुड़ाव और उसका बिना किसी को नुकसान पहुंचाना, उसे एक खास जगह दिलाता है।

गौरैया, हाउस स्पैरो परिवार (पासेरिडे) से संबंधित एक छोटा पक्षी है। यह दुनिया के सबसे आम पक्षियों में से एक है और यूरोप, एशिया और भूमध्यसागरीय क्षेत्र सहित कई देशों में पाया जाता है। बिहार सरकार ने 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित किया। इस निर्णय का एक मुख्य कारण गौरैया की घटती संख्या और उसके संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना था। इससे पहले दिल्ली सरकार ने भी 2012 में गौरैया को अपना राजकीय पक्षी घोषित किया था।

गौरैया के लिए खतरा

आधुनिक जीवनशैली और शहरीकरण ने गौरैया के प्राकृतिक आवास को काफी हद तक प्रभावित किया है। फूस और खपड़े के घरों की जगह कंक्रीट के मकानों ने ले ली है, जिससे गौरैया को घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा है। मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें, कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग और भोजन की कमी भी गौरैया की आबादी घटने के प्रमुख कारण हैं।

गौरया संरक्षण के प्रयास:

गौरैया को बचाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। हर साल 20 मार्च को “विश्व गौरैया दिवस” मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। कई पर्यावरणविद और संगठन कृत्रिम घोंसले बनाने और लोगों को अपने घरों में दाना-पानी रखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बिहार में भी गौरैया के संरक्षण के लिए विभिन्न जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।गौरैया सिर्फ बिहार का राजकीय पक्षी नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन का प्रतीक भी है। इसका संरक्षण केवल एक पक्षी को बचाना नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के सामंजस्यपूर्ण रिश्ते को बनाए रखना है। यह आवश्यक है कि हम सभी मिलकर इस नन्ही सी चिड़िया के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयास करें, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसके मधुर चहचहाहट का आनंद ले सकें।

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