‘प्रथम सोपान – मंगलाचरण’ (बाल काण्ड) रामचरितमानस की शुरुआत में किया गया पवित्र प्रणाम है। यहाँ तुलसीदास जी बहुत श्रद्धा और नम्रता से भगवान श्रीराम, अपने गुरु, गणेश जी, सरस्वती माँ और शिव–पार्वती को याद करते हैं। यह मंगलाचरण पूरे ग्रंथ में भक्ति और शुभता का वातावरण बना देता है। इसमें श्रीराम को करुणा से भरे, भक्तों का सहारा देने वाले और सबका कल्याण करने वाले भगवान के रूप में प्रणाम किया गया है। तुलसीदास जी मानते हैं कि भगवान और गुरु की कृपा से ही सही ज्ञान, समझ और कविता का जन्म होता है। इसलिए यह प्रथम सोपान रामचरितमानस की शुरुआत को बहुत ही मंगलमय और भक्तिपूर्ण बना देता है।
श्लोक – 1

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
अर्थ:
अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥
श्लोक – 2

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥
अर्थ:
श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥2॥