क्या आपने कभी सोचा है – बिहार का राजकीय चिन्ह क्या है?
यदि हाँ, तो आइए, इस लेख के माध्यम से हम इस गौरवशाली प्रतीक को समझने का प्रयास करें।
बिहार का राजकीय चिन्ह न केवल एक प्रशासनिक प्रतीक है, बल्कि यह राज्य की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतिबिंब है। इस चिन्ह का केंद्रीय बिंदु है – बोधि वृक्ष (Bodhi Tree), वह पवित्र पीपल का वृक्ष जिसके नीचे 531 ईसा पूर्व में भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की थी। यह वृक्ष आज भी गया जिले के प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित है और विश्वभर में बौद्ध धर्म का प्रतीक माना जाता है।
इस चिन्ह के दोनों ओर स्वास्तिक चिन्ह अंकित हैं, जो भारतीय संस्कृति में शुभता, संतुलन और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इन चिह्नों की उपस्थिति न केवल बिहार की आध्यात्मिक गरिमा को दर्शाती है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता को भी दर्शाती है। चिन्ह के आधार पर एक ईंट दर्शाई गई है, जिस पर उर्दू में ‘बिहार’ लिखा गया है – यह राज्य की भाषाई समरसता और बहुलतावादी स्वरूप का प्रतीक है।
ऐसा कहा जाता है कि इस चिन्ह को 1930 और 1935 के मध्य, ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से अपनाया गया था। हालांकि 1950 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने अशोक स्तंभ के सिंह-शीर्ष को राज्य का प्रतीक घोषित किया था, फिर भी बोधि वृक्ष वाला यह पारंपरिक चिन्ह आज भी दस्तावेजों, राजकीय भवनों और आधिकारिक मोहरों पर व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है।
बिहार का यह राजकीय चिन्ह एक गहन संदेश देता है – यह ज्ञान, शांति, समरसता और आत्मबोध का प्रतीक है। बोधि वृक्ष जहां प्रबुद्धता और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं स्वास्तिक चिह्न मंगलकामना और कल्याण का संदेश देते हैं।
अंत में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बिहार का राजकीय चिन्ह मात्र एक चित्र नहीं, बल्कि एक गहरी संवेदना का प्रतीक है। यह चिन्ह राज्यवासियों को उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है और उन्हें प्रेरित करता है कि वे अपने गौरवशाली इतिहास से सीख लेकर एक सुनहरे भविष्य की दिशा में अग्रसर हों।