छठ पूजा का इतिहास क्या है?
छठ पूजा का प्रारंभिक इतिहास बहुत प्राचीन है और इस ब्रत में संतान प्राप्ति के लिए एक विशेष प्रकार की पूजा के रूप में माना जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य होता है, सूर्य भगवान और उनकी पत्नी उषा की पूजा करना है, जिन्हें जीवन के निरंतर संचार में धन्यवाद दिया जाता है। इस पूजा को प्राचीन समय से ही बिहार के लोगों द्वारा मनाया जाता आया है और यह पूजा बिहारियों के लिए समृद्धि, सम्मान, और शांति के लिए प्रार्थना का एक श्रेष्ठ अवसर में से एक है।
छठ पूजा का महत्व क्या है ?
छठ पूजा को बिहार का एक सभ्य एबं अनूठा पर्व माना जाता है, जो स्थानीय लोगों के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक अवसर में से एक है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार राज्य के गाँवों एबं शहरों बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ पूजा के दौरान, लोग सूर्योदय और सूर्यास्त के समय माँ छठी महिया की पूजा करते हैं और अपनी प्रार्थनाओं को सूर्य भगवान के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, छठ पूजा के दौरान व्रत का पालन किया जाता है, जिसमें व्रतीजो पूजा करते है महिला या पुरुष वे दो दिन तक नमक और चावल का भोजन करते हैं और तीन दिन तक केले, गुड़, और दूध का सेवन करते हैं। इस बिच तीन दिन तक कोई नमक या मसाला नहीं खाया जाता है।
छठ पूजा के पर्व मानाने की क्या-क्या प्रक्रिया होता है ?
छठ पूजा के पर्व की प्रक्रिया चार दिनों तक चलती है,आइये एक-एक करके जानते हैं …
- पहले दिन – लोग सूर्योदय के समय जल में स्नान करते है जिसमे खाने की विशेष तैयारियाँ की जाती है जैसे – खाने में लौकी (कद्दू) का सब्जी ,चना का दाल ,चावल (भात),दही आदि खाया जाता है।
- दूसरे दिन – संध्या से मीठा चावल जो की गुड़ और दूध का मिश्रण के द्वारा बनाया जाता है। मीठा चावल तैयार हो जाने के बाद पहले भोजन भगवान को भोग लगाया जाता है। कुछ देर बाद ब्रती उस भोजन का सेवन करती /करता है। फिर घर के लोग मीठा चावल को प्रशाद के रूप में ग्रहण करता है।
- तीसरे दिन – दोपर से घर में प्रसाद बनना सुरु हो जाता है। जैसे – प्रसाद में पूड़ी ,ढेकुआ बनाया जाता है। बन जाने के बाद सभी फल पकवान एक बाँस का बना टोकरी में भर के सफ़ेद कपड़े से ढक के बांध दिया जाता है। फिर घर का कोई लोग स्नान करके उस टोकरी को (इसे बहँगी भी कहते है) सर पे रख के नदी या तालाब के घाट पर पहुंच कर बहँगी को निचे साफ करके रखा जाता है। फिर ब्रती के द्वारा संधा को डूबते सूर्य की ओर हाथ में लिए बहँगी में रखें जलते दीपक से पूजा किया जाता है।
- चौथे दिन – सूर्यास्त के समय, लोग दीपों का आराधना करते हैं और छठ पूजा का त्योहार समाप्त करते हैं। फिर आँगन में केले के पत्ते पर प्रसाद चढ़ाकर घर के सभी लोग प्रसाद ग्रहण करते है।