गुजरात के पश्चिमी तट पर अरब सागर के किनारे स्थित द्वारका, भारत के सबसे पवित्र और पौराणिक शहरों में से एक है। यह शहर भगवान कृष्ण की राजधानी के रूप में विख्यात है और हिंदू धर्म के चार धामों (बद्रीनाथ, रामेश्वरम, पुरी और द्वारका) में से एक है। इसकी प्राचीनता, धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य इसे तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाते हैं।
भगवान कृष्ण की नगरी
द्वारका का उल्लेख महाभारत और पुराणों जैसे प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद इस यादव नगरी की स्थापना की थी। कहा जाता है कि उन्होंने विश्वकर्मा की सहायता से एक शानदार शहर का निर्माण कराया, जो समुद्र में डूबा हुआ था। यह नगरी “स्वर्ण द्वारका” के नाम से जानी जाती थी, क्योंकि यह सोने और रत्नों से सुसज्जित थी। मान्यता है कि भगवान कृष्ण के स्वर्गारोहण के बाद, उनकी मृत्यु के साथ ही द्वारका नगरी समुद्र में समा गई। आधुनिक पुरातत्वविदों ने समुद्र में डूबे हुए शहर के कुछ अवशेषों की खोज की है, जो इन प्राचीन कथाओं की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं।
धार्मिक महत्त्व
- द्वारकाधीश मंदिर (जगत मंदिर): यह द्वारका का सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित मंदिर है। भगवान कृष्ण को समर्पित यह पाँच मंजिला मंदिर लगभग 2200 साल पुराना माना जाता है। मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला, जटिल नक्काशी और 43 मीटर ऊंचे शिखर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के शीर्ष पर 52 गज की एक विशाल ध्वजा फहराई जाती है, जिसे दिन में कई बार बदला जाता है, जो एक महत्वपूर्ण रस्म है। भक्त यहाँ भगवान कृष्ण के “द्वारकाधीश” रूप के दर्शन करने आते हैं।
- रुक्मिणी देवी मंदिर: द्वारका से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर भगवान कृष्ण की पटरानी देवी रुक्मिणी को समर्पित है। मंदिर अपनी सुंदर नक्काशी और दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों के लिए जाना जाता है।
- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर: द्वारका से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ भगवान शिव को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण शैव तीर्थ स्थल है।
- बेट द्वारका: मुख्य द्वारका से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर एक द्वीप पर स्थित बेट द्वारका (शंखोद्धार बेट) वह स्थान माना जाता है जहाँ भगवान कृष्ण अपने मित्र सुदामा से मिले थे। यह एक लोकप्रिय नाव यात्रा गंतव्य है और यहाँ कई छोटे मंदिर हैं, जिनमें से एक सुदामा मंदिर भी है।
- गोमती घाट: द्वारकाधीश मंदिर के पास गोमती नदी का संगम अरब सागर से होता है। गोमती घाट एक पवित्र स्नान स्थल है जहाँ तीर्थयात्री मंदिर जाने से पहले डुबकी लगाते हैं। यहाँ सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है।
- द्वारका बीच और लाइटहाउस: अरब सागर के किनारे द्वारका बीच एक शांत और सुरम्य स्थान है। पास का लाइटहाउस शहर और आसपास के समुद्री दृश्यों का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
त्योहार और संस्कृति
द्वारका में जन्माष्टमी का त्योहार अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ एकत्रित होते हैं। मंदिरों में कीर्तन, नृत्य, झांकी और रासलीला का आयोजन भी किया जाता है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से द्वारका
द्वारका एक ऐसा शहर है जहाँ आध्यात्मिकता हर जगह व्याप्त है। यहाँ की गलियों में, मंदिरों में और घाटों पर भगवान कृष्ण के भजन और जयकारे गूँजते रहते हैं। यह शहर हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थान है। जन्माष्टमी, होली और दिवाली जैसे त्योहारों को यहाँ बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
द्वारका केवल एक प्राचीन शहर नहीं है, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ पौराणिक कथाएं जीवंत हो उठती हैं। यह भगवान कृष्ण की दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने, आध्यात्मिक शांति खोजने और भारत की समृद्ध धार्मिक विरासत में डूबने का अवसर प्रदान करता है। द्वारका की यात्रा वास्तव में एक अविस्मरणीय अनुभव है, जो आत्मा को शुद्ध करती है और मन को शांति प्रदान करती है। यह वह स्थान है जहाँ इतिहास और आस्था एक साथ मिलते हैं, और हर पत्थर भगवान की कहानियाँ कहता है।